हमसे छीने हुए अधिकार वापिस दो l
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में लागू हो l
नदी,जंगल,पहाड़ पर भू कानून ( 5 वी अनुसूची)
मूल निवास 1950 (वनवासी दर्जा)
ईश्वर ने नदी,पहाड़, जंगल की सुरक्षा एवं संरक्षण की जिम्मेदारी हमारे पूर्वजों को सौंपी l उन्होंने इसे बखूबी निभाया। अब अपने पूर्वजों की इस जिम्मेदारी को हमें निभाना है। इसे निभाने के लिए हमें मिलकर संघर्ष करना है। यदि हम इन्हें नहीं बचा पाए तो ईश्वर को क्या मुंह दिखाएंगे l आने वाली पीढ़ी भी हमें कोसेंगी l
कैसे छीना गया हमसे नदी, जंगल का अधिकार (5 वी अनुसूची) l
अंग्रेजी सरकार ने भारत के कुछ हिस्सों में Schedule District Act 1874 लागू किया l यह कानून उन इलाकों में लागू था l जिन्हे अंग्रेज़ी सरकार ने बेहद पिछड़ा माना l यहां के निवासियों को जंगलों पर आश्रित माना l उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में यह कानून भी लागू था l उस समय उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र को कुमाऊँ कमिश्नरी के नाम से जाना जाता था l
1935 में अंग्रेजों ने भारत के कुछ इलाकों को Exluded Area ( बहिस्कृष्त क्षेत्र) घोषित किया था l
इसमें गढ़वाल और अल्मोड़ा को भी शामिल किया था l उस समय गढ़वाल और कुमाऊं को इस नाम से ही जाना जाता था l
जिन इलाकों में Schedule District Act 1874 लागू था और जो इलाके 1935 में Excluded क्षेत्र में शामिल थे l आजाद भारत में उन इलाकों में 5 वी या 6 वी अनुसूची लागू हो गई l यहां रहने वाले निवासियो को Tribe ( वनवासी दर्जा) मिल गया l
हम सरकार से यही मांग करते है की हमें हमारा हक वापिस चाहिए l जब पूरे देश में Schedule District Act 1874 और 1935 के बहिष्कृत क्षेत्र में 5वी या 6वी अनुसूचि लागू की गई l वहां के निवासियों को Tribe (वनवासी दर्जा) मिला l तो उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में ऐसा क्यों नहीं हुआ l
उत्तराखंड चिपको आंदोलन के तीन बेहद प्रसिद्ध नारे थे l
1) यह जंगल हमारा मायका है l कोई हमें यहां से नहीं निकाल सकता l
2) वनों से रोजगार पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है l
3) ‘वन जागे , वनवासी जागे ‘
आज भी उत्तराखंडी अपनी नदी,जंगल पर अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं l आज भी वनवासी दर्जा वापिस पाने के लिए लड़ रहे हैं l
पहाड़ियों से कैसे छीना गया आरक्षण l
उत्तरप्रदेश में पर्वतीय क्षेत्र के लोगो को 6% आरक्षण मिलता था l लेकिन 1995 में हमसे वे अधिकार भी छीन लिया गया l उस समय पर्वतीय क्षेत्र की आबादी पूरे उत्तरप्रदेश के सिर्फ़ 2% ही थी l
क्या पहाड़ियो को अब 5वी अनुसूची/ वनवासी दर्जा मिल सकता है ?
भारत सरकार की लोकर समिति (1965) में Tribal Status के जो मानक बनाए , उनमें उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र खरा उतरता है l आज भी पहाड़ी क्षेत्र का 80% से ज्यादा हिस्सा वन है l
पांचवी अनुसूची के लाभ
वनवासी दर्जा के परिणाम स्वरुप युवाओं को शिक्षा,सरकारी नौकरियों जैसे क्षेत्रों में आरक्षण मिलेगा। हमारी नदियों जंगलों और पहाड़ों पर हमारा अधिकार होगा। उत्तराखंड के पार्वती इलाकों के विकास के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार अलग से फंड देगी l अनुसूचित जनजाति अधिनियम जैसे प्रभावी कानून हमारी बहन – बेटियों को सुरक्षा प्रदान करेंगे l मूल निवास 1950 ,भू कानून ,परिसीमन जैसे मुद्दे पांचवी अनुसूची की व्यवस्थाओं के अंतर्गत स्वतः ही हल हो जाएंगे l भाषा एवं संस्कृति का संरक्षण सुनिश्चित हो पाएगा l
भारत देश एवं देशवासियों को लाभ l
जब उत्तराखंड का विकास होगा तो उत्तराखंड से पलायन नहीं होगा l हिमालय क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि होगी l चीन से लगे सीमा के निकट स्थानीय लोगों की रिहायश बढ़ने से चीन की सेना भारतीय सीमाओं का आक्रमण करने से पहले अनेक बार सोचेगी । भारतीय सेना में जसवंत सिंह जैसे उत्तराखंड वीरों का इतिहास चीनी बखूबी जानते है l चीन से लगी सीमा पर भारतीय सैना का खर्च भी कम होगा l पर्यावरण का संरक्षण सुनिश्चित होगा। हिमालय नदी सदानीरा बनी रहेगी l जिससे देश के मैदानी इलाकों के एक बड़े भूभाग को सूखे के हालात से नहीं गुजरना पड़ेगा l देश के लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल मिलेगा। संक्षेप में पांचवी अनुसूची के लिए संघर्ष केवल उत्तराखंड के पर्वतीय भूभाग को बचाने के लिए नहीं है l यह संघर्ष हिमालय को बचाने का भी है , मां गंगा को बचाने का भी है l
उत्तराखंड बसाओ, हिमालय बचाओ, देश बचाओ l