5 मार्च 1905 को पंजाब के दत्तोचूहड़ (अब पाकिस्तान) में जन्मीं दीदी की शिक्षा जालंधर के आर्य कन्या महाविद्यालय में हुई। उनके पिता अंग्रेजी सेना में नौकरी करते थे। पढ़ाई के दौरान सुशीला क्रांतिकारी दलों से जुड़े छात्र-छात्राओं के संपर्क में आईं। उनका मन भी देशभक्ति में रमने लगा और देखते ही देखते, वह खुद क्रांति का हिस्सा बन गईं। लोगों को जुलूस के लिए इकट्ठा करना, गुप्त सूचनाएं पहुंचाना और क्रांति के लिए चंदा इकट्ठा करना उनका काम हुआ करता था। यहां पर उनका मिलना-जुलना भगत सिंह और उनके साथियों से भी हुआ। यहां पर उनकी मुलाक़ात भगवती चरण और उनकी पत्नी दुर्गा देवी वोहरा से हुई।
यह सुशीला दीदी ही थीं जिन्होंने दुर्गा देवी को ‘दुर्गा भाभी’ बना दिया। उन्होंने ही सबसे पहले यह संबोधन उन्हें दिया और फिर हर कोई क्रांतिकारी उन्हें सम्मान से दुर्गा भाभी कहने लगा और सुशीला को सुशीला दीदी।
कहते हैं कि भगत सिंह भी सुशीला दीदी को बड़ी बहन की तरह सम्मान करते थे। ब्रिटिश सरकार की बहुत सी योजनाओं के खिलाफ सुशीला दीदी ने उनकी मदद की थी।
सुशीला दीदी : स्वाधीनता आंदोलन की वो नायिका, जिसने क्रांतिकारियों के लिए शादी के गहने तक बेच दिये
सुशीला दीदी उन तीन लोगों में शामिल हैं जिनसे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने से पहले अंतिम मुलाकात की थी। देश ने सुशीला दीदी जैसी सैकड़ों वीरांगनाओं का स्वाधीनता में योगदान तो दूर उनका नाम तक भुला दिया।